कभी सुना था बचपन में किसी तज़ुर्बेकार् सॆ
जिस दिन खुद को भूल जाओगे, उसी दिन खुद को पाओगे
वही सुबह तुम्हारी होगी, वही होगा नया सवेरा
नया दिन, नया पल.…
कुछ सिखा गया एक बीता साल
दोस्त तो वही हैं पर दोस्ती बदल गयी
ज़िन्दगी, जो शोर-शराबे में खुद को महफूज़ पाती थी अब तक
खामोशी के पल ढूंढने लगी।
चिड़ियों का चहचहाना, हवाओं कि वो धीमी आवाज़ें
जो जाने कहाँ खो सी गयीं थीं,
वापस पड़ने लगी है मेरे कानों में।
नज़रें अब ढूंढती नहीं है किसी अपने को,
खुद से पहचान सी होने लगी है।
किसी बुज़ुर्ग की तरह समझा गया -
ज़िन्दगी वो सब कुछ नहीं, जो देखी है मैंने अब तक
ज़िन्दगी वो बिलकुल नहीं ,जो दिखती है सड़कों पर
वो मिलती नहीं दुनिया कि भीड़-भाड़ में,
वो बिकती नहीं बाज़ारों में।
ज़िन्दगी बस वो ही नहीं है मेरे दोस्त
जो डूबी हुई है इन यारियों में.....
परदा उठा गया उन धुंधली तस्वीरों पर से,
रौशनी सी गिरा गया मेरे ज़हन पर
और चुपके से कह गया -
भूल जा खुद को
भूल जा ये दुनिया।
आ चलें हम साथ
एक नए सफ़र में,
एक नए पल में,
एक नयी ज़िन्दगी में।
और कुछ यूँ कदम रखा मैंने इस एक नए साल में....
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