Tuesday, May 1, 2018

तेरा साया



कभी हंसने लगी हूँ, कभी रोने लगी हूँ
माँ मैं तुझ जैसी होने लगी हूँ

बैठे बैठे ही कितने ख्वाब पिरोने लगी हूँ
माँ मैं तुझ जैसी होने लगी हूँ
____________________________

वो बचपन, वो लड़कपन
वो घड़ी घड़ी रूठ जाना
फिर तुनकमिज़ाजी से रही कसर पूरी कर
तेरे हाथ की गरम रोटी खाने बैठ जाना

आज वही मैं - अपने बच्चों के नखरे ढोने लगी हूँ
माँ मैं तुझ जैसी होने लगी हूँ
_____________________________

कभी काजल, कभी बिंदी
कभी ओढ़नी पहन के इतराना मेरा

तेरी थकी आँखों में वो चमक देख
मन ही मन मुस्कुराना मेरा

उसी पहचानी थकान से
आज अपनी आँखें भिगोने लगी हूँ
माँ मैं तुझ जैसी होने लगी हूँ
______________________________

वो बिफर जाना मेरा तेरी हर एक फटकार पर
सोच कर कि तुझे कुछ भी नहीं है मालूम

दुनिया कितनी बड़ी लगती थी तब
और तेरी बातें?
कितनी छोटी

अब वही छोटी बातों को याद कर
अपना हर एक दिन सजोने लगी हूँ
माँ मैं तुम जैसी होने लगी हूँ
______________________________

तेरी सादगी नहीं भाती थी मुझे
कभी तो लाली पाउडर लगा लेती?

पर आज वही हाल है मेरा भी
दराज़ में धूल खाती हैं तमाम बनावटी चीज़ें

तुझ जैसी ही खूबसूरत सादगी में
मैं खुद को डुबोने लगी हूँ
क्यों माँ मैं तुझ जैसी ही होने लगी हूँ
_________________________________

वक़्त बह निकला है माँ
समय ने करवट ली है

अब वही पुरानी तस्वीरों में 
तुझमे मैं आज खुद को देखती हूँ

इसे खेल कहो या किस्मत
कुछ बातें समझ आती हैं बड़े इत्मीनान से

मुस्कुराते मुस्कुराते ये देखो अब रोने लगी हूँ
हाँ माँ मैं तुझ जैसी ही होने लगी हूँ
________________________________

HAPPY MOTHER'S DAY


No comments: